आए दिन भारत की कोर्ट में किसी ना किसी के खिलाफ मुकदमे दर्ज होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा हैं कि किसी के खिलाफ सिविल मुकदमा कैसे दर्ज करवाते हैं। यदि नहीं तो आइए हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से पूरी जानकारी दे देते हैं। यदि आप किसी के खिलाफ सिविल मुकदमा दर्ज करवाने जा रहे हैं तो इसके बारे में पहले पूरी जानकारी यहाँ से इकट्ठी कर ले।
हर देश में सिविल मुकदमा दर्ज करवाने का एक अलग कानून या प्रोसेस बनाया हुआ होता हैं। बिलकुल ऐसे ही भारत में भी सिविल मुकदमा दर्ज करवाने का एक प्रोसीजर बनाया गया हैं। जिसको फॉलो करके किसी के भी खिलाफ सिविल मुकदमा दर्ज किया जा सकता हैं।
अगर इस प्रोसीजर को मुकदमा दर्ज करवाने वाला व्यक्ति फॉलो नहीं करता हैं तो रजिस्ट्रार केस को ख़ारिज करने का पूरा अधिकार रखता हैं।
लिखित भाषा या आरोप को आम भाषा में अभियोग कहा जाता हैं। मुकदमा दर्ज करवाने वाले व्यक्ति को वादी अर्थात Plaintiff और जिसके खिलाफ केस दर्ज किया जाता है उसे प्रतिवादी अर्थात Defendant कहा जाता है।
शिकायतकर्ता के पास अपने आरोप को दर्ज करवाने के लिए सीमा अधिनियम के तहत एक निर्धारित समय होता हैं। शिकायत की कॉपी टाइप होने के साथ-साथ उस पर न्यायालय का नाम, शिकायत की प्रकृति, पक्षों के नाम और उनका पता साफ-साफ अक्षरों में लिखा होना चाहिए।
इन सबके आलावा शिकायत में वादी को अपना एक शपथ पत्र भी जमा करना होता हैं।जिसमे यह साफ-साफ लिखा होता हैं कि शिकायत में लिखी गई सभी बाते बिलकुल सही हैं।
वकालतनामा:
वकालतनामा एक ऐसा डॉक्यूमेंट हैं जिसके तहत कोई भी पार्टी अपना केस दर्ज करवाने के लिए वकील को अपनी और से केस लड़ने के लिए हायर करती हैं वकालतनामा में कुछ बहुत जरुरी बाते लिखी होती हैं। जो इस प्रकार हैं:-
- अदालत का कोई भी फैसला आए या और कोई भी फैसला हो, क्लाइंट वकील को ज़िम्मेदार नहीं ठहरायेगा।
- केस लड़ने के दौरान जितना भी खर्च आएगा। सब क्लाइंट ही वहन करेगा।
- क्लाइंट के द्वारा पूरी फीस जमा ना करने तक वकील वाद से जुड़े सभी कागजात अपने पास रख सकता हैं।
- यदि क्लाइंट वकील के काम से संतुष्ट नहीं हैं तो क्लाइंट वकील को किसी भी समय छोड़ सकता हैं।
- यदि वकील अपने मुव्वकिल के हक़ में कोई फैसला लेना चाहता हैं तो उसको इसका पूरा अधिकार हैं।
कोर्ट के प्रोसीजर:
यदि सुनवाई के पहले दिन कोर्ट को केस में कोई दम लगता हैं तो कोर्ट प्रतिवादी को एक निश्चित तारीख अपनी बहस जारी रखने के लिए देता हैं।
लेकिन प्रतिवादी को नोटिस भेजने से पहले कुछ जरुरी काम पूरे करने होते हैं। जैसे-
- अदालत में कार्यवाही करने के लिए एक आवश्यक और न्यूनतम शुल्क लगता हैं।
- कोर्ट में हर एक प्रतिवादी को पिटीशन की दो कॉपी जमा करनी होती हैं।
- जितने भी प्रतिवादी होते हैं। उनको एक पिटीशन की कॉपी रजिस्टर्ड डाक द्वारा मिलती हैं और दूसरी साधारण पोस्ट द्वारा मिलती हैं।
लिखित बयान:-
प्रतिवादी को नोटिस मिलने के बाद मिली हुई पेशी तारीख में कोर्ट में पेश होना बहुत जरुरी होता हैं। लेकिन इस तारीख से पहले प्रतिवादी को अपना लिखित ब्यान दर्ज करवाना बहुत जरुरी होता हैं।
ज्यादा से ज्यादा 30 दिन के अंदर प्रतिवादी को अपना बचत ब्यान तैयार करना पड़ता हैं। और उन सभी आरोपों से इनकार करना चाहिए जो उसे झूठ लगते हैं।
लेकिन अगर विशेष आरोपों से इनकार नहीं किया जाता हैं तो ऐसा समझा जाता हैं कि प्रतिवादी को वह आरोप मंजूर हैं और दोषी मान लिया जाता हैं।
लिखित ब्यान के साथ एक और शपथ पत्र जमा करना होता हैं जिसमे यह लिखा होता हैं कि ब्यान में लिखी हुई सब बाते सच हैं।
लिखित बयान दर्ज कराने के लिए निर्धारित समय सीमा 30 दिनों की अवधि है और कोर्ट की अनुमति से 90 दिन तक बढ़ाई जा सकती है।
निष्कर्ष:
इसी विषय पर और जानकारी लेने के लिए हमारे पेज पर दिए गए फॉर्म को भरकर जमा करे। हमारी टीम आपके प्रश्नों का उत्तर देगी।