चाइल्ड कस्टडी का मामला ऐसा मामला हैं जो एक ही समय पर बहुत ज्यादा संवेदनशील और भावनात्मक होता हैं क्यूंकि ये माता-पिता और उनके बच्चो से जुड़ा हुआ होता हैं। भारत में चाइल्ड कस्टडी के लिए कानून बना हुआ हैं जिसकी ज्यादातर लोगो को जानकारी नहीं हैं। हमारा आज का आर्टिकल इसी जानकारी पर आधारित हैं। तो चलिए, शुरू करते हैं।
चाइल्ड कस्टडी क्या है?
अगर साधारण शब्दों में चाइल्ड कस्टडी की बात करे तो जब किसी व्यक्ति को किसी का बच्चा अच्छी देखभाल करने के लिए सौपा जाता हैं तो यह चाइल्ड कस्टडी कहलाती हैं। ये मामला ज्यादातर शादी-शुदा जोड़े के तलाक़ के समय देखने को मिलता हैं।
ऐसे मामलो में बच्चे के माता-पिता में से किसी एक को या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को बच्चे की देखभाल करने के लिए सौंपा जाता हैं ताकि बच्चे को अच्छी परवरिश और सही मार्गदर्शन मिले।
चाइल्ड कस्टडी क़ानून धर्म के हिसाब से अलग-अलग होते हैं क्यूंकि बच्चे के माता-पिता के बाद ये कानून व्यक्तिगत कानूनों द्वारा हैंडल किये जाते हैं।
हालाँकि जो कानून एक जैसे माने जाते हैं जैसे गार्जियन और वार्ड हैं, ये अधिनियम 1890 लागू हैं। फिर भी ज भी बाल कानून लागू किये जाते हैं, तो इनका निजी कानूनों पर भी बहुत प्रभाव पड़ता हैं।
अगर हिन्दू धर्म में चाइल्ड कस्टडी की बात की जाए तो हिन्दू धर्म चाइल्ड कस्टडी को नहीं मानता हैं। क्यूंकि धर्म का मानना हैं कि किसी भी हालत में बच्चे की अच्छी देखभाल केवल उसके माता-पिता ही कर सकते हैं और उन्हें ही अपने बच्चे की देखभाल करनी चाहिए।
हिन्दू धर्म ये भी बताता हैं कि अगर पिता की मृत्यु हो जाये तो केवल उनकी माँ को ही बच्चे की कस्टडी देनी चाहिए। जब एक हिन्दू बच्चे की हिरासत पर तलाक़ के समय बहस होती हैं तो वकील व्यक्तिगत कानून का तो पालन करता ही हैं इसी के साथ-साथ संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का भी पालन करता हैं।
चाइल्ड कस्टडी कानून
बच्चे की कस्टडी के लिए कानून निर्धारित किये गए हैं लेकिन बदलते समय और विकास के कारण ये कानून पूरी तरह से लागू नहीं होता हैं। लेकिन हिन्दू के बीच चाइल्ड कस्टडी के कानून कुछ इस प्रकार हैं:-
- अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890
- हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956
जब भी चाइल्ड कस्टडी की बात आती हैं तो सबसे ज्यादा उठने वाला केवल यही सवाल हैं कि बच्चे की हिरासत आखिर किसको दी जानी चाहिए। कौन इसका ज्यादा हकदार हैं।
आज के समय में उपयुक्त कानूनों ने इस सवाल का जवाब बेहद आसान कर दिया हैं और जैसी परिस्तिथियाँ होती हैं उन्ही के अनुसार बच्चे की हिरासत का असली हक़दार ही बता दिया हैं। चलिए, इसी बारे में चर्चा करते हैं।
बच्चे की माँ को भी है अधिकार
यदि हिंदू अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम, 1956 काननों के तहत बच्चे की हिरासत की बात की जाए तो इन लोगो को अधिकार मिलता हैं:-
- अगर बच्चे की उम्र 5 वर्ष से कम हैं तो इस केस में केवल माँ को ही अच्छे की कस्टडी दी जाती हैं क्यूंकि बच्चे का शारीरिक और भावनात्मक विकास इस उम्र में अच्छा होना बेहद जरुरी होता हैं।
- अगर बच्चे की माँ अपने बच्चो की कस्टडी चाहती हैं तो केवल दो ही परिस्तिथि में मुमकिन होता है अगर बच्चे की उम्र 5 वर्ष से ज्यादा और 18 वर्ष से कम हो और बच्चे के पिता की मृत्यु हो चुकी हो। वरना केवल पिता को ही बच्चे का प्राकृतिक पिता माना जाता हैं और पिता को चाइल्ड कस्टडी दी जाती हैं।
- अगर बच्चा गैरकानूनी हैं तो इस केस में चाइल्ड कस्टडी माँ को दी जाती हैं।
क्या किसी तीसरे व्यक्ति को भी हिरासत दी जा सकती हैं?
जब बच्चे की कस्टडी माँ-बाप, दोनों ही लेने के लिए इच्छुक ना हो और फिर अदालत को खुद ही बच्चे की हिरासत माँ-पिता को देना बेहतर नहीं लगता हैं तो ऐसे केस में बच्चे की हिरासत दादा-दादी को दे दी जाती हैं।
लेकिन अगर दादा-दादी या फिर अन्य कोई रिश्तेदार भी बच्चे की कस्टडी लेने के लिए तैयार नहीं हैं तो अदालत खुद ही किसी समझदार व्यक्ति को चाइल्ड कस्टडी सौंप देती हैं।
किन लोगो को चाइल्ड कस्टडी नहीं दी जाती हैं?
- ऐसे व्यक्ति को किसी भी चाइल्ड कस्टडी अदालत नहीं देती हैं जिस व्यक्ति ने दुनिया और मोह-माया त्याग दिया हो।
- इसी के साथ-साथ ये ध्यान देना भी जरुरी हैं कि उस व्यक्ति ने वास्तविक रूप से इस बात की घोषणा कर दी हो।
निष्कर्ष: हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे आर्टिकल की मदद से “भारत में चाइल्ड कस्टडी प्राप्त करने की प्रक्रिया क्या है?” के बारे में सभी जरुरी जानकारी मिल गयी हैं। अगर आपको इस आर्टिकल से जुड़ा कोई भी प्रश्न पूछना हैं तो आप दिए गए फॉर्म को भरे। हमारी टीम आपसे जल्द कांटेक्ट कर आपके सभी प्रश्नों को हल करेगी।