बच्चे की कस्टडी

वैसे तो भारत में “कस्टडी” शब्द का मतलब “हिरासत” ही समझा जाता हैं। लेकिन जब बच्चे की कस्टडी का मामला आता हैं तो यह थोडा अलग हो जाता हैं।

यदि आपको भी यह जानने में उत्सुकता हैं कि तलाक़ के बाद बच्चे की कस्टडी माँ और बाप में से किसको दी जाती हैं तो आप इस लेख से इस बारे में पूरी जानकारी इकट्ठी कर सकते हैं।

यदि “होनौरेबल न्यायमूर्ति विनोद प्रसाद” की बात पर गौर किया जाए तो उनके मुताबिक़ बच्चे की कस्टडी केवल उसको ही दी जाएगी जो बच्चे को प्यार, स्नेह और पूरी देखभाल से पालने में सक्षम होगा।

यह लेख भारतीय समाज में कानून के हिसाब से एक बच्चे को किसको सौपा जाना चाहिए उसी को ध्यान में रखकर बनाया गया हैं।

एक RTI रिपोर्ट के मुताबिक अदालत में 1 साल के अंदर 83 बाल कस्टडी (Child Custody) के मामले आये थे जिसमे से केवल दो बच्चो की कस्टडी पिता को सौपी गयी बाकि 50 प्रतिशत बच्चो की कस्टडी रातो-रात केवल माता-पिता को दी गयी हैं।

बच्चे के हित

सुप्रीम कोर्ट कहती हैं कि सबसे पहले बच्चे के हित और उसके कल्याण के बारे में सोचा जाएगा, ना की ये सोचा जाए कि बच्चे को किसको सौपा जाए अदालत बिलकुल भी इस धारणा को नहीं मानती कि केवल माँ ही बच्चे की प्राकृतिक संरक्षक हैं।

कानूनन तौर पर अभिभावक और वार्ड अधिनियम 1890 कानून के तहत अदालत को यह पूरा अधिकार हैं कि वह बच्चे के अभिवावक का फैसला कर सके। जिसको आम भाषा में “कानूनी हिरासत”(Legal Custody) भी कहा जाता हैं।

कानून हिरासत भी कुछ प्रकार की होती हैं जैसे कि-

  • जहाँ केवल माता या पिता में से केवल एक ही को बच्चे की कस्टडी मिलती हैं उसको “एकमात्र कस्टडी” कहते हैं।
  • जहाँ माता और पिता, दोनों को बच्चे की परवरिश करने के लिए मिलती हैं उसको “संयुक्त हिरासत” बोलते हैं।
  • जिस केस में बच्चे के दादा-दादी या नाना-नानी या किसी और को बच्चे की कस्टडी मिलती हैं उसको “थर्ड पार्टी कस्टडी” कहते हैं।

कई बार देखा गया हैं कि नाबालिग बच्चे के माँ-बाप तलाक़ के बाद बच्चे की कस्टडी को लेकर कोर्ट में अप्लाई करते हैं।

ऐसे मामले में बालिग बच्चे को अपना पक्ष रखने का पूरा हक होता हैं कि वह किसके साथ रहना चाहता हैं।

लेकिन अदालत बच्चे के विचार सुनती हैं और उनपर सोच-विचार पूरा करती हैं फिर फैसला देती हैं जिसको माँ-बाप और बच्चे को मानना होता हैं।

भारत में बहुत से केस ऐसे भी देखे गए हैं जहाँ पर माँ या बाप द्वारा बच्चे को रिश्वत या बहकाया भी जाता हैं कि वह अदालात में उसके साथ रहने के लिए कहे ऐसा इसीलिए किया जाता हैं जिससे कि एक पार्टनर को दूसरे पार्टनर को मेंटेनेंस का खर्चा न देना पड़े।

लेकिन अदालत ये सब बाते बड़ी अच्छे से जानती हैं और कोई भी कानून की नजरो से बच नहीं पता हैं।

इसीलिए अदालत के मुताबिक़ बच्चे की परवरिश, उसका अच्छे पर्यावरण में पालन-पौषण हो यह सबसे पहले आता हैं इसीलिए अदालत सब पहलू पर सोच-विचार करके ही फैसला देती हैं कि तलाक़ के बाद बच्चे की कस्टडी किसको सौपी जाए।

निष्कर्ष

यदि आप इस विषय पर और जानकारी चाहते हैं तो हमारे पेज पर दिए गए फॉर्म को सही जानकारी के साथ भरे इसकी मदद से हम आप तक पहुंचकर आपको और जानकारी उपलब्ध कराएँगे।