ऐसा कहा जाता हैं कि जोड़ियाँ स्वर्ग में बनाई जाती हैं जो बस इस धरती पर आकर किसी ना किसी बहाने से मिलते हैं। लेकिन कभी-कभी ये जोड़ियाँ साथ नहीं रह पाती हैं और केवल एक पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा हैं जिसमे अलग होने के लिए देश के कानून का सहारा लिया जाता हैं।
जब पति-पत्नी आपस में रहने के लिए रजामंद नहीं होते हैं तो वो कोर्ट में तलाक़ के लिए अर्जी देते हैं। अब तलाक़ के भी कुछ नियम होते हैं जो दोनों, पति-पत्नी को पता होना बेहद जरुरी हैं।
आज हम अपने आर्टिकल में आपके लिए इन्ही नियमों की जानकारी लेकर आए हैं। तो अगर आप भी ये जानना चाहते हैं कि तलाक़ के वे कौन से नियम हैं जिनकी जानकारी हर शादीशुदा जोड़े को होनी चाहिए, तो हमारा ये आर्टिकल अंत तक पढ़े।
तलाक़ कितने प्रकार के होते हैं?
तलाक़ के नियम जानने से पहले हम ये पता होना बहुत जरुरी हैं कि तलाक़ कितनी तरह के होते हैं।
दरअसल, तलाक़ दो तरह के होते हैं:-
- आपसी सहमति से तलाक़
- एकतरफा तलाक़
आपसी सहमति तलाक़ के क्या नियम होते हैं?
जब पति-पत्नी अपनी ख़ुशी और आपसी रजामंदी से अलग होने का फैसला करते हैं तो इसके नियम कुछ आसान होते हैं और प्रक्रिया भी आसान होती हैं जो हमने नीचे दी हैं।
- जब शादीशुदा जोड़ा राजी-ख़ुशी से रिश्ता खत्म करने का फैसला लेते हैं तो इसके लिए उन्हें सबसे पहले कोर्ट में अर्जी देनी होती हैं।
- इस प्रक्रिया में आरोप-प्रत्यारोप, एक-दूसरे के साथ वाद-विवाद जैसे मुद्दे नहीं होते हैं। इसी कारण की वजह से इतने एहम रिश्ते से निकलना दोनों के लिए बहुत आसान होता हैं।
- आपसी सहमति तलाक़ में कुछ बाते बहुत जरुरी हैं जिनमे से एक हैं गुज़ारा भत्ता। अगर पति-पत्नी में से एक दुसरे पर निर्भर हैं तो आत्मनिर्भर साथी दूसरे साथी को उसकी जरूरत के हिसाब से गुजाराभत्ता देता हैं।
- वैसे तो इस भत्ते की कोई तय सीमा नहीं होती हैं। आपसी समझ और जरूरतों के हिसाब से ये गुज़ारा भत्ता तय होता हैं।
- अगर शादी के बाद बच्चे भी हैं तो चाइल्ड कस्टडी भी एक अहम मुद्दा होता हैं जिसमे आपसी समझ या फिर कोई एक पैरेंट बच्चो की जिम्मेदारी ले सकता हैं।
- लेकिन दूसरे व्यक्ति को आर्थिक मदद के लिए हमेशा तैयार रहना होता हैं।
- आपको एक बात का जरुर ध्यान रखने चाहिए कि आपसी सहमति से तलाक़ तभी संभव हैं जब पति-पत्नी एक साल से एक-दूसरे से अलग रह रहे हो।
- दोनों पार्टी को तलाक़ के लिए कोर्ट में अर्जी देनी होती हैं जिसमे पहली प्रक्रिया में दोनों पार्टी के अलग-अलग ब्यान लिए जाते हैं। फिर sign किये जाते हैं।
- इसके बाद दोनों को 6 महीने तक एक साथ रहने की सलाह दी जाती हैं।
- अगर तब भी दोनों एक-दूसरे के साथ रहने के लिए राज़ी नहीं होते हैं तो फिर तलाक़ पर मुहर लगा दी जाती हैं।
एकतरफा तलाक के नियम:
- एक-तरफ़ा तलाक़ थोडा मुश्किल और दुखदायी होता हैं।
- इसके लिए सबसे पहले जिस व्यक्ति को तलाक़ चाहिए होता हैं उसे कोर्ट में अर्जी डालनी होती हैं।
- फिर कानूनी दांवपेंच के जरिये दोनों पार्टी से बातचीत की जाती हैं। दोनों पार्टी में बहस और एक दूसरे पर आरोप लगने का सिलसिला चलता ही हैं।
- इसमें पत्नी को तलाक़ के लिए कुछ ख़ास अधिकार भी दिए जाते हैं जैसे- पहली पत्नी को तलाक़ दिए बगैर पति दूसरी शादी नहीं कर सकता हैं, और अगर लड़की की शादी 18 वर्ष उम्र से पहले ही शादी कर दी गई हो तो शादी गैर-कानूनी मणि जाती हैं।
- अगर सभी तरह से कोशिश करने के बाद भी पति-पत्नी साथ रहने के लिए राज़ी नहीं होती हैं तो कोर्ट उनके तलाक़ पर मुहर लगा देती हैं।
निष्कर्ष:
तलाक़ किसी भी तरह का हो, दोनों ही दुखदायी होता हैं। दोनों तरह से एक रिश्ता टूटता हैं इसीलिए तलाक़ लेने से पहले एक बार नहीं, काफी बार हर तरह से सोच लेना चाहिए। उम्मीद करते हैं हमारे आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। अगर फिर भी आपके मन में इस आर्टिकल से जुड़ा कोई भी प्रश्न हैं तो आप दिए गए फॉर्म को अपनी सही जानकारी के साथ भरकर सबमिट करे। हमारी टीम जल्द ही आपके प्रश्नों का उत्तर देगी।