अक्सर पति-पत्नी में आपसी मतभेद की वजह से बात तलाक़ तक पहुँच जाती हैं जहाँ पर महिला को पुरुष की तुलना में ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं क्यूंकि महिलाएं अक्सर आर्थिक जरूरतों के लिए अपने साथी पुरुष पर निर्भर रहती हैं।
यही सब स्तिथियों को देखते हुए भारत सरकार ने महिलाओं के लिए गुजारा-भत्ता कानून बनाया हैं जिसके तहत महिलाओं को तलाक़ के बाद आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
अगर आपको गुजारा-भत्ता कानून क्या हैं और इससे जुड़ी पूरी जानकारी नहीं हैं तो पूरा आर्टिकल पढ़े।
भारत में गुजारा-भत्ता कानून क्या हैं?
गुजारा-भत्ता कानून में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधान लागू होते हैं जिसके तहत पति को अपनी कमाई का 25 प्रतिशत अपनी पत्नी को देना होता हैं।
अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से एक राशि पर पहुँचते हैं तो ठीक हैं वरना ये फैसला भी कोर्ट ही लेती हैं। यह एकमुश्त या किस्तों (मासिक, तिमाही इत्यादि) में लिया जा सकता हैं।
गुजारा-भत्ता कब किसे दिया जाता हैं?
गुजारा-भत्ता हर तरह की महिला को पति द्वारा दिया जाता हैं। अगर पत्नी नौकरी करती हैं और कमाती हैं तो भी पत्नी सम्मान से अपना जीवनयापन कर सके, इसीलिए उसको गुज़ारा भत्ता दिया जाता हैं।
अगर पत्नी कमाती नहीं हैं तो पत्नी की शैक्षिक योग्यता, जरूरत, उम्र और खर्च के हिसाब से मूल्य राशि तय की जाती हैं।
अगर पति-पत्नी को कोई संतान भी हैं?
अगर बच्चे की कस्टडी महिला को मिलती हैं तो गुज़ारे-भत्ते में बच्चे के खर्च नहीं शामिल होता हैं। बच्चे का खर्च पति को अलग से देना होगा।
अगर महिला कमाती हैं तो भी महिला को अपनी कमाई में से भी बच्चे के पालन-पोषण के लिए खर्च अलग से करना होगा। ऐसा इसीलिए किया जाता हैं जिससे बच्चे की परवरिश में कोई कमी ना हो और माँ- पिता का फैसला बच्चे के जीवन पर असर ना डाल पाएं।
अगर पति दिव्यांग हैं?
अगर पति शारीरिक रूप से बीमार हैं और कमा नहीं पाता हैं और पत्नी कमाती हैं तो यहाँ पर पति गुज़ारा भत्ता लेने का पूरा हक़दार हैं।
भुगतान कितना होता हैं?
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ पति जितना कमाता हैं उसका एक तिहाई या फिर 25 प्रतिशत महिला को दिया जाना चाहिए। अगर पति की आय बढ़ती या घटती हैं तो गुज़ारे-भत्ते पर फिर से विचार किया जा सकता हैं।
एकमुश्त भुगतान पर भारत सरकार द्वारा कोई टैक्स नहीं लगाया जाता हैं लेकिन मासिक भुगतान पर टैक्स लगता हैं।
स्त्रीधन क्या है?
शादी के दौरान महिला को जितने भी उपहार मिलते हैं वे सभी स्त्रीधन में आते हैं जैसे- जेवरात, प्रॉपर्टी, कार, पेंटिग, अप्लायंस, फर्नीचर इत्यादि। इसके अलावा शादी के बाद भी अगर महिला ने अपनी कमाई से कोई बचत या निवेश की हैं तो वो भी स्त्रीधन माना जाता हैं।
तलाक़ के समय दो गवाहों के बीच इन सभी उपहार की लिष्ट बनाकर क्लेम किया जा सकता हैं। जितने भी उपहार सास-ससुर, दोस्त, नाते-रिश्तेदार और संगे-संबंधी दिए जाते हैं वो सभी महिला के होते हैं।
क्या महिला का नहीं है?
- शादी के दौरान पति को भी महिला के घर की तरफ से कुछ उपहार दिए जाते हैं जैसे सोने की चैन, अंगूठी, आदि। इन सभी पर केवल पति का हक़ होता हैं।
- अगर पति ने पत्नी के नाम पर कोई संपत्ति ली हैं लेकिन पत्नी को तोहफे के तौर पर नहीं दिया हैं तो उस पर केवल पति का हक़ हैं।
- अगर महिला अपनी कमाई से घर में कुछ खर्च करती हैं तो महिला उसकी मांग नहीं कर सकती।
निष्कर्ष गुजारा-भत्ता ने कई महिलाओं की जिंदगी सुधारी हैं। इस कानून की वजह से बहुत महिलाओं ने अपनी जिंदगी नए सीरे से शुरू की हैं। अगर आप इस आर्टिकल से जुड़ी और जानकारी लेना चाहते हैं तो हमने फॉर्म दिया हैं। इसे अपनी सही जानकारी के साथ भरकर जमा कर दे। हम आपके सभी सवालों का उत्तर देंगे।
तलाक के वे नियम जिनकी जानकारी हर शादीशुदा जोड़े को होनी चाहिए