शादी एक ऐसा समय होता है जब दो लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं और एक-दूसरे के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। वे जीवनसाथी बन जाते हैं।
शादी एक कानूनी अनुबंध भी है। कभी-कभी, शादी कुछ जोड़ों के लिए काम नहीं करती है। हालांकि जीवन में हर दूसरी चीज की तरह, शादी में भी हमेशा सब कुछ पक्का नहीं होता और यहां तक कि जब एक व्यक्ति इससे बाहर निकलना चाहता है, तब भी कानूनी बाध्यताएं बनी रहती है ।
ऐसी परिसथिति में आपने अपना रिश्ता खत्म करने का अगर सोच ही लिया है और आपको नहीं पता कि कैसे आगे बढ़ा जाए तो नीचे दिए गए नियम आपकी मदद कर सकते हैं।
तलाक क्या है?
यह कानूनी कार्रवाई द्वारा विवाह की समाप्ति है जिसमें एक व्यक्ति द्वारा शिकायत की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि आधिकारिक तौर पर आपकी शादी खत्म हो रही है।
ऐसा इसलिए किया जाता है कि जब एक व्यक्ति दूसरे के जीवन से बाहर जाना चाहता है, तब भी उसके पास उनके साथी के जीवन की जिम्मेदारी बनी रहती है।
तलाक लेने के तीन बेहद आवश्यक चरण।
1) सोच समझ कर अलग होने का निर्णय।
सबसे पहला कदम है कि आपको एक दृढ़ निश्चय करना है कि आपको तलाक लेना ही है। आपको अपने पति या फिर पत्नी के खिलाफ तलाक लेने के निर्णय के लिए अपने दिमाग को दृढ़ निश्चय कर समझाना पड़ेगा, कि आप दोनों साथ साथ में नहीं रह सकते हो; और इस वजह से आपको तलाक का रास्ता अपनाना पड़ रहा है।
2) समझदार व कुशल वकील का चयन।
आपको किसी कुशल और समझदार वकील का चयन करना होगा जिसको अपने पेशे में महारत हासिल हो।
जो आपके केस को समझें और बेहतर तरीके से आपको आपके केस से संबंधित सही राय देकर जीतने में मदद कर सके।
( पढ़े आर्टिकल वकील का चयन कैसे करें)
https://www.requestlegalservice.in/10-qualities-of-a-good-lawyer/
3) वकील के साथ बैठकर तलाक याचिका तैयार(पिटिशन फाइल) करना व अदालत में उसको दायर करना।
आप कौन से कोर्ट में याचिका(केस फाइल) दर्ज कर सकते हैं।
(Court jurisdiction)
आप निम्न तीन स्थान के कोर्ट में केस फाइल कर सकते हैं:-
1] जहां पति पत्नी की शादी हुई है।
2]जहां पर पति पत्नी पहली बार एक साथ रहे हो।
3]जहां पर पति पत्नी आखिरी बार एक साथ रहे हो।
इन तीन जगह के अलावा आप किसी और कोर्ट में याचिका नहीं कर सकते ।
भारत में तलाक की प्रक्रिया।
भारत में मुख्यतः तलाक लेने की दो प्रक्रिया है जिनके अंतर्गत तलाक को मंजूरी दी जा सकती है।
#1)आपसी सहमति से तलाक।(म्युचुअल कंसेंट डाइवोर्स)।
#2) तलाक के लिए संघर्ष (कंटेस्टेड डायवोर्स)।
आपसी सहमति से तलाक।(म्युचुअल कंसेंट डाइवोर्स)।
दंपत्ति के द्वारा सूज-बूझ व आपसी समझौते से लिए जाने वाले तलाक़ को आपसी सहमति से लिया जाने वाला तलाक (म्युचुअल कंसेंट डायवोर्स) कहा जाता है । यानी पति और पत्नी दोनों शांतिपूर्ण तरीके से विवाह को समाप्त करने के लिए सहमत होते हैं।
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए दो शर्तों को पूरा करना बहुत जरूरी है।
पहली शर्त :-#1)पति-पत्नी का 1 साल तक अलग रहना।
आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पति और पत्नी को 1 साल तक अलग रहना अनिवार्य है ।
यह समय शादी के अगले दिन से ही शुरु होना माना जा सकता है अलग रहने का मतलब यह है कि वह दोनों एक छत के नीचे नहीं रह सकते।
एक ही फ्लैट के दो कमरों में नहीं रह सकते हैं लेकिन एक ही अपार्टमेंट के अलग-अलग फ्लैट में रह सकते हैं।
#2) पति-पत्नी के बीच अलग-अलग रहकर कोई शारीरिक संबंध नहीं होना चाहिए।अगर अलग रहते हुए भी शारीरिक संबंध बन जाते हैं तो पिछला समय नहीं गिना जाएगा।
लेकिन अगर आप इस 1 वर्ष के समय अंतराल को खत्म कराना चाहते हैं तो इसके लिए आप हिंदू मैरिज एक्ट 1955 सेक्शन 14 के तहत आप याचिका दे सकते हैं जिसके लिए आप को कोर्ट में ठोस कारण या तर्क वितर्क देने होंगे।
दूसरी शर्त:-दूसरी शर्त या परिस्थिति (सेकंड कंडीशन) है आपसी सहमति।
दोनों पार्टी के बीच तलाक आपसी सहमति से बिना किसी दबाव के होनी चाहिए अगर यह दोनों शर्तें पूरी हो जाती है तो उसके बाद आप कोर्ट में केस दर्ज कर सकते हैं।
([संक्षेप में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 बी के अनुसार दोनों पति-पत्नी 1 साल से अलग रह रहे हो और दोनों पति-पत्नी के बीच अलग रहते हुए किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध नहीं बना होना चाहिए
दोनों पक्षों की या पार्टी की तलाक के लिए सहमति बिना किसी दबाव के होनी चाहिए])
आपसी सहमति से तलाक के दो मुख्य पहलू
मुख्य 2 पहलू जिनमें पति और पत्नी को आम सहमति तक पहुंचना होता है।
पहला :_गुजारा भत्ता(एलिमनी)/मेंटेनेंस मुद्दा है। कानून के अनुसार, मेनटेनेंस की कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं है। यह किसी भी आंकड़े का हो सकता है।
दूसरा :- दूसरा मुद्दा बच्चे की कस्टडी का है। यह संयुक्त (म्यूच्यूअल) या सिर्फ एक व्यक्ति का भी हो सकता है जो पति और पत्नी के निर्णय पर निर्भर करता है।
तो चलिए अब जानते हैं कोर्ट में केस करने की कानूनी प्रक्रिया के बारे में।
आपसी सहमति से न्यायालय(कोर्ट)में याचिका दायर करना।
पहला चरण :-दोनों पक्ष यानी पति और पत्नी को न्यायालय(कोर्ट) में एक याचिका दायर करनी होती है।
दूसरा चरण:- कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलों को सुनकर दोनों के बयान को रिकॉर्ड करती है और दोनों पक्षों के हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लिए जाते हैं ,ताकि बाद में कोई भी मुकर ना सके और दोनों पक्षों के वकील यह पुष्टि करते हैं कि दोनों वही सही व्यक्ति है यानी पति पत्नी है ।
तीसरा चरण :-न्यायालय दोनों पक्षों को 6 महीने का समय देती है ताकि वह दोबारा एक बार अपने टूटे हुए रिश्ते को समय दें तथा विचार विमर्श करें, कि उन्हें तलाक चाहिए या नहीं। अवधि को सामंजस्य बिठाने की अवधि भी कहा जाता है।
चौथा चरण :-6 महीने की समय अवधि समाप्त होने पर न्यायालय द्वारा दोनों पक्षों को सुनवाई के लिए बुलाया जाता है ।तथा उनका अंतिम निर्णय जाना जाता है कि वह किस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
पांचवा चरण:-अंतिम सुनवाई में न्यायालय(कोर्ट) अपना आखरी फैसला सुनाती है।